Wednesday, August 26, 2009

"उत्तम आर्जव" पर्युषण पर्व: तृतीय दिवस

प्रस्तुत शृंखला मुनिवर क्षमासागरजी महाराज के दश धर्म पर दिए गए प्रवचनों का सारांश रूप है. पूर्ण प्रवचन "गुरुवाणी" शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक में उपलब्ध हैं. हमें आशा है की इस छोटे से प्रयास से आप लाभ उठा रहे होंगे और इसे पसंद भी कर रहे होंगे.

इसी शृंखला में आज "उत्तम आर्जव" धर्म पर यह झलकी प्रस्तुत कर रहे हैं.

जय जिनेन्द्र!

"उत्तम आर्जव"

जीवन में उलझनें दिखावे और आडम्बर की वजह से हैं . हमारी कमजोरियां जो मजबूरी की तरह हमारे जीवन में शामिल हो गयी हैं , उनको अगर हम रोज़ -रोज़ देखते रहे और उन्हें हटाने की भावना भाते रहे तो बहुत आसानी से इन चीज़ों को अपने जीवन में घटा बढा सकते हैं . हमारे जीवन का प्रभाव आसपास के वातावरण पे भी पड़ता है .जब हमारे अंदर कठोरता आती है तो आसपास का परिवेश भी दूषित होता है . इसीलिए इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए की हमारे व्यव्हार से किसी को कष्ट हो .

दुसरे के साथ हम रूखा व्यव्हार करेंगे , दुसरे के साथ छल -कपट करेंगे , धोखा देंगे और इसमें आनंद मानेंगे तो हमारी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता दोनों ही धीरे -धीरे करके ख़तम हो जायेगी . वर्तमान में ये ही हो रहा है . हम कृत्रिम हो गए हैं ,दिखावा करने लगे हैं जिससे लोगों के मन में हमारे प्रति विश्वास नहीं रहा ,एक -दुसरे के प्रति संदेह ज्यादा हो गया , यहाँ तक की परिवार में भी एक -दुसरे के प्रति स्नेह ज्यादा है -विश्वास कम है . लेकिन रिश्ते तो सब विश्वास से चलते हैं . रिश्ता चाहे भगवान् से हो या संसार के व्यक्तियों से या वस्तुओं से , सभी विश्वास और श्रध्दा के बल पे ही हैं . यदि हम श्रध्दा और विश्वास बनाये रखना चाहते हैं तो हमारा फ़र्ज़ है की हम आडम्बर से बचें , अपने मन को सरल बनाने की कोशिश करें .

सरलता के मायने हैं - इमानदारी ,सरलता के मायने हैं - स्पष्टवादिता ,सरलता के मायने हैं - उन्मुक्त ह्रदय होना , सरलता के मायने हैं - सादगी , सरलता के मायने हैं - भोलापन , संवेदनशीलता और निष्कपटता .

हमें इन बातों को धीरे -धीरे अपने जीवन में लाना होगा , या फिर इनसे विरोधी जो चीज़ें हैं उनसे बचने का प्रयास करना होगा . इमानदार और सरल होने पे यह मुश्किल खड़ी हो सकती है की लोग हमें हानि पहुंचायें . यह मुश्किल थोडी बढेगी पर इसके बाद भी हमें अपनी इमानदारी बनाये रखना है . किसी ने हमको ठग लिया तो हम भी उसे ठग लें यह बात गलत है . यह बात मनुष्य जीवन में सीख लेना है की -

"कबीरा आप ठगाइए ,और ठगिये कोए

आप ठगाए सुख उपजे ,पर ठगिये दुःख होए "

कोई अपने को ठग ले तो कोई हर्ज़ नहीं पर इस बात का संतोष तो रहेगा की मैंने तो किसी को धोका नहीं दिया . एक बार धोका देना ,या छल -कपट करने का परिणाम हमें सिर्फ इस जीवन में नहीं बल्कि आगे आने वाले कई भवों तक भोगना पड़ेगा .

बाबा भारती के घोडे की बात तो सबको मालूम है . बाबा भारती से डाकू ने घोड़ा छीन लिया लेकिन बाबा भारती ने डाकू से यही कहा की -'यह बात किसी से कहना मत नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जायेगा की दीन -हीन की मदद नहीं करना चाहिए '. एक बार हम धोखा दे देते हैं तो हमारी इमानदारी पर संदेह होने लगता है ,इसलिए सरलता वही है जिसमें हम इमानदार रहते हैं , दूसरों के साथ छल नहीं करते , विश्वास और प्रमाणिकता बनाये रखते हैं . हम कहीं भी हो ,हमारा ह्रदय उन्मुक्त होना चाहिए .

गुरुवर क्षमासागरजी महाराज की जय!

मैत्री समूह रेशु जैन को यह प्रवचन सारांश बनाने में दिए गए योगदान के लिए सहृदय धन्यवाद प्रेषित करता है!


1 comment:

  1. thanking you to giving our these our important information & knowledge.

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